ऊपर हवाई जहाज उड़ता है
नीचे कई घर हैं
जिनमें ईंटें कम हैं, दरारें ज्यादा
यह नाइंसाफी की बानगी भर है कि
जहाज की ऊँचाई से ये घर नहीं दिखते
पर ठिगने घरों के सपनों और आसमान के हिस्से
ये जहाज अटे पड़े हैं.
किसी घोर आशावादी कवि ने कहा,
'सूरज का डूबना अगले दिन के
आगमन का पैगाम है'
यह झुनझुना है उन घरों को
जहाँ बिजली की तारें बस आने-को है
जहाँ की रातें सिर्फ पूर्णमासी को
रौशन पाई गईं.
लालिमा छितरा जा रही चौतरफ
कूँची में मिले पड़े हैं कई रंग
अनगढ़ आकृतियाँ आकार ले रहीं
यह सब साजिश है रंगसाज की
छतों पर पसरे फ़टे-पुराने कपड़ों
टूटे-बिखरे, गिरे-धँसे घरों को
मनोहर कोई बैकग्राउंड देने का.
आगे बढ़ने की कवायद ही है कि
देश अव्वल आने की खुशफहमी में जीता है
तभी चीजों के दाम महँगाई का हाथ थाम
सड़क पार करते हैं
यह करिश्मा नहीं तो और क्या है कि
दीन-दुखियों की कतारें आगे नहीं बढ़ती
बल्कि पीछे से लम्बी होती जाती हैं.
जहाज मुक़ाम की ओर बढ़ रहा है
ढलते सूरज की किरणें माँग रहीं विदा
क्षितिज अपने कपाट बंद करने की तैयारी में है
ये इशारात हैं इस बात की तरफ
कि आते-ही होंगे अब उन घरों के लोग
वापस काम से!
© अमित