नेतरहाट विद्यालय के संस्कृत विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष आचार्य सुरेश कुमार झा जी का निधन
नेतरहाट विद्यालय के संस्कृत विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष आचार्य सुरेश कुमार झा का रविवार को निधन हो गया. बिहार और झारखंड में संस्कृत के विद्वान के रुप में उनकी प्रतिष्ठा थी। वे अपने पीछे भरापूरा परिवार छोड़ कर गये हैं। उनके एक पुत्र और तीन पुत्री हैं। सोमवार को सुबह दस बजे हरमू मुक्तिधाम में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।
उनके निधन पर नेतरहाट विद्यालय के पूर्ववर्ती छात्रों समेत समाज के विभिन्न क्षेत्रों के विद्वानों ने श्रद्धांजलि दी है।
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सास्रं सश्रद्धं श्रद्धाञ्जलयः
ऊँ शान्तिः। वेदाहमेतं पुरुषं महान्तमादित्यवर्णं तमसः परस्तात्।
तमेव विदित्वाsतिमृत्युमेति नान्यः पन्था विद्यतेsयनाय।।
अद्य प्राप्तं वृत्तम्- आचार्यप्रवराः लोके सुरेशकुमार झा इत्याख्यया नैकविधं प्रचलिताः सातिशयं प्रेष्ठाः लब्धप्रतिष्ठाः विद्वांसः विविधरूपगुणान्विताः नेतरहाट विद्यालयस्य कृतकार्याः शिक्षकाः पाञ्चं शरीरं विहाय कीर्तिशेषत्वम् अभजन्।
लभेन्मुक्तिञ्च शाश्वतीम्
- सौजन्य से : श्रीमान विन्ध्याचल पाण्डेयः जी !!
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'बाबू जरा पान वाला डलिया ले लेना रूम में टेबल पर रखा है!'बस इतना बोलते थे श्रीमान जी,हम खुश हो जाते,बस इसी आदेश का इंतजार रहता था उनके बुलाने पर।उनके फ्रिज में रखा पंतुआ,शाही टोस्ट आदि एक - एक तो निगल ही जाते थे तुरंत.घर जाने से 1 दिन पहले बैठक लगती थी उनके कमरे में।कितना पैसा लोगे?पान घुलाते हुए, मुस्कुराते फिर हंस देते।एक बार हमने कहा 500 लेंगे श्रीमान जी।श्रीमान जी की आवाज उसी इको के साथ अब तक गूंज रही है "क्या करोगे इतना पईसा,अपने बउआ का झुनझुना लोगे?"मेरे साथ पूरा कमरा ठहाके लगा रहा था।नेतरहाट में पहले अभिभावक थे श्रीमान जी।माताजी भी उतना ही वात्सल्यपूर्ण बर्ताव करतीं।लेकिन श्रीमान जी का स्नेह ज्यादा बलवान था। हम हाउसमेट्स योजना ही बनाते रह गए कि श्रीमान जी से मिलने जरूर जाना है रांची।धिक्कार है खुद को।श्रीमान जी आप आशीर्वाद का बक्सा लिए चले गए।ऋतिक फोन पर खूब रो रहा था श्रीमान जी, किससे कहें कुछ।आप तक फेसबुक पोस्ट नहीं पहुंच सकता,लेकिन आपको महसूस कर रहे हैं सभी।किशोर आश्रम के आश्रमाध्यक्ष आवास के परिसर में आपके साथ बैठे हैं श्रीमान जी।शहतूत और लीची के पेड़ पर अब भी किशोर आश्रम का ही कब्जा है श्रीमान जी।आपके उस सीमेंट वाले रिसते पानी की टंकी को अभी - अभी मैंने सीमेंट चढ़ाकर ठीक किया है श्रीमान जी,अब ये पहले की तरह हो गया है।ज्ञान - संपदा से भरपूर थे श्रीमान जी,बाबूजी जैसे थे श्रीमान जी,हंसते,पान घुलाते,मुस्कुराते संबल थे श्रीमान जी। सौजन्य से : दीपक कुमार 2011-2015
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आज अचानक फेसबुक के एक पोस्ट में श्रीमान जी की फोटो दिखी और देखते ही मन घबरा गया । पोस्ट पढ़ा तो दिल की धड़कनें और बढ़ती चली गईं । जिसका डर था वही हुआ, श्रीमन जी नहीं रहे ।
अचानक से मन में पुरानी बातें घूमने लग गईं। किशोर आश्रम के अंतिम दो साल में श्रीमान जी हमारे अश्रमाध्यक्ष थे ।
कहते थे -
" खूब खाओ और खूब पढ़ो । मुझे खूब खाने वाले छात्र बहुत पसंद हैं ।"
जब हम दसवीं कक्षा में पहुंचे तो श्रीमान जी की प्रेरणा से ही संस्कृत को अनिवार्य विषय में रख पाए । मैंने काफ़ी दिनों तक हिंदी को ही मुख्य विषय रखा था और इस दौरान कभी भी श्रीमान जी ने विषय बदलने के लिए नहीं कहा, शायद इसलिए कि वो किसी प्रकार का दबाव नहीं बनाना चाहते थे । फिर थोड़ा आकलन करने के बाद जब मैं एक दो और सहपाठियों के साथ उनसे राय लेने गया तो उन्होंने संस्कृत में कम से कम 95% ले आने के गारंटी दी । इतनी सरलता और कॉन्फिडेंस में उनकी गारंटी सुनकर, फिर किसी भी प्रकार का संदेह नहीं रह गया । आम कक्षाओं के समय के बाद भी श्रीमान जी हमेशा पढ़ाने के लिए उपलब्ध रहते थे । हम दोपहर में एक बार हिचकिचाते हुए उनसे पढ़ने के लिए पहुंचे, लग रहा था कि शायद दोपहर के खाने के बाद आराम कर रहे होंगे । पहले माताजी बाहर आईं और हमें दो मिनट रुकने के लिए कहा, हमने माताजी से कहा कि अगर श्रीमान जी आराम कर रहे हैं तो हम बाद में आयेंगे । पर माताजी हमें इंतजार करने के लिए बोल कर अंदर चली गईं । बस दो मिनट में श्रीमान जी बाहर आए और हमारी अतिरिक्त कक्षा शुरू हो गई ।
पढ़ाई के बाद मैंने श्रीमान जी से पूछा कि हम आज शायद गलत समय पर आ गए, और आप अगर आप अपनी सुविधा से एक समय बता दें तो हम उसी समय पर आयेंगे और आपके विश्राम में खलल नहीं डालेंगे ।
श्रीमान जी बोले -
" सुनो बालक तुम बारह बजे रात में आएगा तब भी हम खुशी से पढ़ाएंगे । "
श्रीमान जी के दावे में वही कॉन्फिडेंस था ।
छात्रों के उपनाम भी श्रीमान जी महाभारत, रामायण आदि ग्रंथों से उठाकर रखते थे । उनके लिए कोई बाणासुर था तो कोई बकासुर , कोई मेघनाद तो कोई हिडिंब । ऐसे नाम जो सुनकर सब मुस्कुरा ही जाते थे ।
एक बार दो छात्र आपस में झगड़ते पकड़े गए । बात थोड़ी मारपीट और हाथापाई तक भी पहुंच चुकी थी । श्रीमान जी ने उस दिन अपने राजसी क्रोध का प्रदर्शन किया । इस गुस्से में भी वो अपने चेहरे से मंद मंद मुस्कान छुपा नहीं पाए , बस आवाज ऊंची हुई थी । उन्होंने दोनों छात्रों को पंजा लड़ाने की खुली चुनौती दी । आज के दिन ही बताया कि पहले वो अखाड़े में कुश्ती के भी चैंपियन रह चुके थे ।
ऐसे ही किसी दिन इलेक्शन ड्यूटी की बातचीत चल रही थी । इस समय श्रीमान जी की तबीयत उतनी अच्छी नहीं थी, हमने उनसे कहा कि अगर ऐसा है तो आप कुछ जुगाङ लगाकर कैंसल क्यूं नहीं करा देते । तब श्रीमान जी ने कहा था -
" नहीं बेटा, मैं कभी अपने कर्तव्य से नहीं भागता । "
ये बात काफ़ी प्रेरित करने वाली थी । और खाली समय में भी मस्तिष्क में गूंजा करती थी । विद्यालय के बाहर भी अगर किसी से श्रीमान जी का परिचय कराया तो ये बातें जरूर सामने आ गईं ।
सुना था तंत्र आदि के भी ज्ञाता थे पर फिर भी कभी अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं दिया । हमने एक दो बार आश्रम में रात में झूठ मूठ का भूत देखने की बातें कहीं तो श्रीमान जी बोले कि कोई पशु या पक्षी रहा होगा । हमारे नकली भूत की कहानी पे बस एक मिनट में पानी फेर दिया !
आखिरी बार रिजल्ट लेने गया तो उनसे मिला था ।
तब बोले थे-
"ये तुम्हारा घर है और जब तुम्हारी मर्जी हो तब आ सकते हो। "
इस बार उनकी आंखों में देखकर कॉन्फिडेंस को आंकने की जरूरत भी नहीं पड़ी । मुझ जैसे संस्कृत के अनपढ़ को भी संस्कृत में 96 आए थे ।
भगवान उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे । आपको हम अपनी स्मृतियों में हमेशा बनाए रखेंगे
सौजन्य से : रोहित कुमार सिंह
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श्रीमान जी को इस वीडियो में देखना और सुनना ..लगता है उनके क्लास में बैठे हुए हैं ..एक बार श्रीमान जी हमको बीच क्लास में उठा के बोले थे ..ए विकास, तुम तो एक दिन विदेश जाएगा..बहुत तरक्की करोगे..मेरा आशीर्वाद है। जापान आने के बाद उनको कॉल करके मैंने याद दिलाया था। काफी लंबी बातचीत हुई थी । उन्होंने पापा के बारे में भी पूछा था..श्रीमान जी मेरे आश्रमध्यक्ष नही थे लेकिन उनकी और पापा की बहुत बनती थी। पापा जब भी नेतरहाट आते थे, श्रीमान जी के घर पर ही उनका खाना होता था। उन्होंने कहा था कि विकास एकदिन आएंगे बेगूसराय तुम्हारे घर पर भी । सब कुछ ऐसे ही रह गया । श्रीमान जी, आपको पापा की कंपनी वहां मिल जाएगा..आप अकेले नही हैं ..माता जी से बात करने की हिम्मत नही हो रही 😭
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श्रद्धांजलि......!!
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नेतरहाट विद्यालय के श्रीमान जी और संस्कृत के लब्ध प्रतिष्ठित आचार्य श्रीमान जी सुरेश कुमार झा जी नहीं रहे। आज संध्या 5 बजे राँची में उन्होंने अंतिम साँस लिया।
विद्यालय के दिनो में वो हमारे पूरे काल गौतम आश्रम के अध्यक्ष रहे। माताजी एवं श्रीमान जी का आश्रम संचालन ऐसा था कि उसकी तुलना दुनिया के किसी और तत्व से शायद ही की जा सकती है। माँ पिता की कमी किसी भी बच्चों को कभी नहीं होने देते । दूसरे आश्रम के बच्चों के बीच भी वो उनके उतने ही नज़दीक रहे। सबसे बड़ी बात दोनो में ये रही की बिना बताए वो हमारी समस्या को जान लेते थे। इतने संस्मरण है विद्यालय पहुँचने के पहले दिन से लेकर आजतक की बोलना मुश्किल है। जब उनके सेवनिवृत्ति के बाद राँची स्थित उनके आवास पे गया तो दोनो से वही प्यार मिला। पत्नी को माताजी ने बहू के समान परम्परा के साथ विदाई दी। एक बार और राँची जाना पड़ा तो श्रीमान जी ने घर आकार खाना खाकर ही लौटने को कहा। श्रीमान जी का दिया हर आशीर्वाद मेरे जीवन में फलीभूत हुआ। आज इस दुःख की घड़ी में श्रीमान जी के अंतिम दर्शन भी नसीब नहीं हो रहा, माताजी का चेहरा बार बार सामने आ रहा है। ईश्वर आपको हिम्मत दे। रौशन , स्वीटी, सोनम और मेघा को सम्बल मिले। श्रीमान जी को मोक्ष मिले।
विद्यालय के हीरक जयंती के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में श्रीमान जी द्वारा दिया गया धन्यवाद ज्ञापन का Vikash द्वारा यूटूब लिंक प्राप्त हुआ। उनके शब्द कानो में गूंज रहे है। किनको नमन करूँ………सौजन्य से : मनीष कांत जी 1996-2000 बैच !