Alok Kumar

Alok Kumar

Anand Ashram, 1990-94

Bio: 

Father of 2 talkative SONS | 9 waiving TREES

husband to one of the most BEAUTIFUL PRINCESSES of the world

An Engineer by PROFESSION | An Entrepreneur by CHOICE | A Traveler by PASSION

An Author at HEART | FOUNDER of 2 successfully running companies

NOW a Wellness coach and PARENTING GUIDE.

सहज की साँझ“सहज की साँझ” - एक निश्छल प्रेम कथा 

Genre: Literature ( Hindi) - Fiction

यह कहानी है सहज और उसकी साँझ की। बचपन के उस निश्छल अनुभूति कि जिस समय ना पाने कि लालसा होती है और ना खोने का डर। घर के आँगन मे पनपने वाले उस समर्पण की, जब खुद से ज्यादा किसी और की फिक्र होने लगे। परिवार की मर्यादा और समाज का डर, कैसे अपनों को दूर कर देता है, इसका अंदाजा सिर्फ भुगतने वाला ही लगा सकता है। समाज के खोखले और दिखावे वाली उन गलत सोच कि जिसकी वजह से ना जाने कितने मासूम अपनी जिंदगी घुट-घुट कर जीने को मजबूर हो जाते हैं। कम उम्र मे ज्यादा जिम्मेदारियों का निर्वहन करना और सतत सीखते रहना एक आम बात थी। पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों के ऊपर वैयक्तिक सुकून और सुख नहीं देखे जाते थे।

यह कहानी है उम्र के उन अल्हड़ दिनों की जब दोस्त ही जिंदगी का सहारा होते हैं। 

यह कहानी उस दौर की  है जब कम्यूनिकेशन बहुत धीमा था। जिंदगी कि रफ्तार काम थी। जीने की  जरूरतें काम थी। अपनों के पास समय होता था । भावनावों की कद्र होती तो थी, पर उन्हे उचित सम्मान नहीं मिलता था।

आज की  तेज दुनिया के सामने जिंदगी धीमी जरूर थी, पर मानवीय मूल्यों का महत्व काफी ज्यादा था। सामाजिक मूल्यों पर सही उतरना टेढ़ी खीर होती थी। लोगों को खुद से ज्यादा समाज कि चिंता रहती। ढकोसले और बाह्य आडंबर बहुत ज्यादा थे। सरकारी नौकरी थी और कृषि अर्थ व्यवस्था का प्राथमिक आधार था। लोग गाँव में रहना ज्यादा पसंद करते थे । परिवार का एक मुखिया होता था, जो सबको सामान रूप से  एक साथ ले कर चलता था।

गाँव की ताजी और स्वच्छ हवा, खुला आकाश, मिट्टी कि सौंधी खुशबू से सारा वातावरण सौहार्दपूर्ण प्रतीत होता था।

ऐसे पावन परिवेश में अपनत्व का पनपना महज संयोग नहीं अपितु ईश्वर की कृपा थी।

सांस्कृतिक और परंपरागत मान्यताओं को समझना और उनके वैदिक मूल्यों को सँजोकर उनके साथ बढ़ते रहना ऐसे परिवेश में सहज और साँझ के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण रहा है। एक दूसरे के होकर भी वे एक दूसरे के नहीं थे। कैसे काल चक्र में फँसकर दोनों ने परिवार कि खुशियों को चुना। अपनी खुशियों को भूलकर बाकी सब के लिए जीते रहे।  

यह कहानी बचपन के उन निश्छल मनोभावों से शुरू होती हैं, जहाँ अनकहा और अव्यक्त समर्पण है । सामयिक और सामाजिक परिस्तिथियों कैसे उनके शांत और कोमल जीवन में उतार चढ़ाव लाती है, जिसे वो बखूबी निभाते हुए अपनी खुशियों को त्याग कर एक दूसरे से हमेशा के लिए अलग हो कर काल के गाल में समा जाते हैं।

ISBN / ASIN :B089RKBCMD

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Brothers in Lockdown“Brothers in Lockdown” - 1 Home 2 Brothers 3 Lockdowns

Genre: Literature ( English) - Fiction

This is a story of two brothers who are stuck in their home due to lockdown without their parents. This story has been written in the context of today’s scenario keeping in mind two very important things of our lives – One, the technology of the 21st century – the era of 4G, smartphones, video calling, chatting and the reliability of technology on our daily lives. Second is even the most crucial of all – the sharing and caring amongst our kids and the learning of lives which parents normally miss these years.

This story is a symbolic depiction of siblings taking care of each other in a tough situation like this. Keep fighting with odds and maintaining peace at heart is a rare quality of today’s era.

The focus should not be to give all sorts of comforts to our kids but to make them “Challenge- Ready” for any circumstances and win over any difficult situation.

This piece of mine is an alarm to all those parents, who overlook these qualities in their children and run only behind the physiological comfort to them.

This art of mine is a pledge towards preparing our children for being a true human-being at heart, softer in our relations and harder with tough times.

I hope you would like this simple yet meaningful story.

ISBN/ASIN: B08CHMDSJX

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