वशिष्ठ बाबू नहीं रहे!बिहार की मिट्टी के सच्चे सपूत और कई मायनों में बिहारी-ज्ञान-परंपरा के योग्य उत्तराधिकारी, जो कभी आर्यभट्ट के वंशज कहे गए तो कभी गणित की दुनिया के भारतीय संदर्भों में रामानुजन का विस्तार माने गए,उनका खामोश महाप्रयाण हम सबको उदास कर गया। एक कालांतर प्रतिभा,जो यदि स्याह -समाज और रूढ़ -व्यवस्था की उपेक्षाओं का शिकार ना होती तो बहुत संभव है कि वैश्विक रंगमंच पर कोई गूढ़ - ब्रह्मांडीय- गुत्थी सुलझाती नियति भारत और बिहार के पक्ष में खड़ी दिखती। एक अद्भुत गणितीय वैशिष्ट्य,जो यदि स्वस्थ माहौल एवं उचित देखभाल पाता तो शायद गणित की अगली महान खोज का श्रेय भारत को मिलता,का इस प्रकार जाना खलता है।
दैनंदिन के क्रियाकलापों में हम कई तरह के अनुभवों से दो-चार होते हैं।कई संयोग बनते- बिगड़ते रहते हैं।यह आवश्यक नहीं कि सभी हमारे लिए समान महत्व के हो या सब पर गौर किया जाए।किंतु कुछ कहानियां ऐसी भी होती हैं जो आपको अनुभूति के स्तर तक झकझोर जाती हैं,आपके मानस पर छप जाती हैं।जाने अनजाने में कब कोई हमारे मन में गहरे पैठ कर जाता है और अंधकार के क्षणों में कब हमारा प्रकाश-पुंज बन हमें मार्गदर्शित करने लगता है,पता ही नहीं चलता। लेकिन एकाएक उनकी अनुपस्थिति को आत्मसात कर लेना ह्रदय के लिए उतना सहज नहीं होता,जितना उनके जीवन की महानता से अनभिज्ञ बने रहना।
आज सुबह जैसे ही खबर मिली "महान गणितज्ञ डॉक्टर वशिष्ठ नारायण सिंह नहीं रहे".... धक्का लगा। दिल बैठ-सा गया!कुछ देर के लिए मन इस सत्य को अस्वीकार कर देना चाहता था पर दिमाग हमेशा अपने विगत अनुभवों को सहेजता है और हर बार यथार्थ को सुनता,देखता और महसूसता है। कल तक जिस "लिविंग लीजेंड" से बस एक बार मिलकर स्वयं को धन्य कर लेने की ख्वाहिश मन पाले बैठा था,तत्क्षण वह सब धूमिल हो गया। किंतु आप "लीजेंड" अब भी हैं और हमेशा रहेंगे।
आपके और हमारे समय में लगभग दो पीढ़ियों से ज्यादा का अंतराल है।किंतु श्रेष्ठ कृतियां कभी 'समय' या 'वादों' के दायरे में आगे नहीं बढ़ती। बल्कि उनकी श्रेष्ठता काल की कसौटी पर कसने के बाद ही सिद्ध होती है और इस रूप में आपकी महानता स्वयं सिद्ध हो जाती है ।अस्तित्व की सुंदरतम रचनाएं हर युग,हर वर्ग की प्रेरणा होती हैं। जिस प्रकार 'निराला' के सृजक-तत्व समय-रेख के पार देखते हैं,'मुक्तिबोध' का साहित्य प्रत्येक काल में विद्रोह का शंखनाद है,उसी प्रकार आपका और हमारा भी सरोकार है और सौभाग्यवश यह जुड़ाव भी कि आपको गणित की शुरुआती तालीम जहां से मिली वहीं से मुझे लिखने की 'प्रेरणा' - नेतरहाट विद्यालय।
नेतरहाट ही वह अदृश्य सूत्र है जो बिखरे हुए अनेक मनकों को पिरोकर एक माला के सौंदर्य को दृष्टिगोचर करता है। नेतरहाट की फ़िजाएं आज भी अपने पूतों के सामर्थ्य पर इतराती हैं।जीवन के महत्वपूर्ण वर्षों में हमारे भी कच्चे मन उन्हीं किस्सों के बीच पले,बढ़े और गढ़ें गए हैं-आप और आपके जैसे तमाम अग्रजों की विलक्षणताओं से प्रेरणा ग्रहण करते और उसी गरिमामयी परंपरा को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता लिए।
सुबह भी इस दुखद सूचना के साथ ही आप से जुड़ी कई कहानियों का अलोड़न हो उठा -कहानियां जो स्पंदन से भरी हैं।उच्च माध्यमिक की परीक्षा में संयुक्त बिहार राज्य में अव्वल आने से लेकर पटना साइंस कॉलेज में आपके विशिष्ट गणितीय प्रतिभा को देखते हुए नियमावली में बदलाव की कहानियां,अपनी प्रतिभा के दम पर गणितीय नवोन्मेष हेतु प्रोफेसर कैली के साथ अमेरिका जाने,नासा के अपोलो मिशन के दौरान कंप्यूटरों से भी तेज गणना, आइंस्टीन के सापेक्षता वाद के सिद्धांत को चुनौती देने जैसी अन्य कई कहानियां,जो अब पीढ़ियों की विरासत है। आप 'कारण' हैं जिस पर हम,विद्यालय परिवार एवं समूचा राष्ट्र गर्व कर सके।
नेतरहाट विद्यालय दिवस के ठीक एक दिन पहले आपका प्रवास इस अपूर्णीय क्षति को और भी गहरा कर देता है।मुश्किल और ढलान के दिनों में भले ही समाज और सत्ता ने अपने इस हीरे को माथे के मुकुट में नहीं संजोया किंतु नेतरहाट गुरुकुल का पूजाघर सदैव इस कुल-दीपक की रोशनी से दैदीप्यमान होगा। यहां की वादियां सदा आपके किस्सों से गुलजार रहेंगी और आप हमारे दिलों में,इन किस्सों के किंवदंतियां बनने तक और उसके परे भी।नेतरहाट-कीर्ति-स्तंभों में आप सदैव अग्रणी पंक्ति में रहेंगे-सुदृढ़, सुघड़ - विद्यालय के आदर्श वाक्य "अत्तदीपा विहरथ" को साकार करते से।
अलविदा वशिष्ठ!
©अंकित
Ankit Kumar Bhagat
Roll 699
Batch 2011
Kapil Ashram