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यह नाम स्व. महेशनारायण सक्सेना श्रीमान जी द्वारा रखा गया है। यह मानव जीवन की चरम आकांक्षा का नाम है। मनुष्य की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धियों की परिणति का नाम है आनंद। यहां तक कि परमेश्वर की कल्पना भी हमारे मनीषियों ने सत् - चित् आनंद के रूप में की है। यह संयोग ही है कि जयशंकर प्रसाद विरचित प्रख्यात 'कामायनी' के आनंद सर्ग की अंतिम कुछ पंक्तियां इस प्रकार है:
समरस थे जड़ या चेतन, सुंदर साकार बना था।
चेतनता एक विलसती, 'आनंद' अखंड घना था।।
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