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प्रदीप शब्द 'प्र' और 'दीप' के योग से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है-ऐसा दीपक जो अपने सद्गुणों के प्रकाश से पूरे ब्रह्मांड को प्रकाशित कर रहा हो।मैं अपने विचारों को राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की कुछ पंक्तियों से व्यक्त करता हूं।
वह प्रदीप जो दीख रहा है
झिलमिल दूर नहीं है।
थककर बैठ गए क्यों भाई
मंजिल दूर नहीं है।।
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