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NOBA Ranchi was formed in year 1969 -70. I was 1st year student at R.M.C.H.(Rajendra Medical College and Hospital),Now it is R.I.M.S.(Rajendra Institute of Medical Sciences). Dr.Vijay Karn ,Resident P...
NOBA Ranchi was formed in year 1969 -70. I was 1st year student at R.M.C.H.(Rajendra Medical College and Hospital),Now it is R.I.M.S.(Rajendra Institute of Medical Sciences). Dr.Vijay Karn ,Resident Physician in the Department of Paediatric R.M.C.H.was our 1st President of Ranchi Noba. Dr.K.K.Nag was also in Ranchi university. Mr.Narendra Bhagat I.A.S also joined as he was Registrar at R.U.,Mr.Kedar lal Das ,Mr .Arun puri,Mr.Dinesh Singh ,Mr.Umesh Singh were Eng.student at B.I.T. Mesra,Ranchi.Sardar Gupinder Singh, Saketan ji (Now Dr.Saket Bhagat). ,Pratap nath Jha, Satish Shriwastwa,Shambhu Nath Singh,Rajeev Ranjan Verma, Myself Ambika Dutt Sharma, were at R.M.C.H.

The meeting of Noba Ranchi was hosted by Dr.Karan at his resident at RMCH.resident's Quater. Afterwards Monthly Meeting was held at RMCH then" Log jurate gaye aur Kanrwan banta gaya". From yr.69-70 till this date I am here in Ranchi.If further informations are needed I can provide.

Dr.A.D.Sharma ,Popular Nursing home, Ratu Road, Ranchi.
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Dhanbad Chapter
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Bokaro Chapter
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Netarhat Old Boy's Association (NOBA) UK is an informal association of students who have studied in Netarhat residential school, Netarhat (Near Ranchi) and have settled in UK.
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यह नाम डॉक्टर रामदेव त्रिपाठी द्वारा दिया गया एवं वही इसके प्रथम आश्रमाध्यक्ष भी बने। प्राचीन समय की गुरुकुल व्यवस्था में सबसे प्राथमिक तथ्य शांति था। नेतरहाट विद्यालय भी शहर के शोर-शराबे से दूर एक शा...
यह नाम डॉक्टर रामदेव त्रिपाठी द्वारा दिया गया एवं वही इसके प्रथम आश्रमाध्यक्ष भी बने। प्राचीन समय की गुरुकुल व्यवस्था में सबसे प्राथमिक तथ्य शांति था। नेतरहाट विद्यालय भी शहर के शोर-शराबे से दूर एक शांत स्थल पर स्थापित है, जिससे यहां के छात्रों को परम शांति की अनुभूति होती है और वह शांत चित्त से अध्ययनरत रहते हैं। शांति के विषय में ईश्वर से प्रार्थना है: शांति कीजिए प्रभु त्रिभुवन में, जल में,थल में और गगन में, अंतरिक्ष में, अग्नि में, पवन में, औषधि वनस्पति, वन- उपवन में, सकल विश्व के जड़ चेतन में, शांति कीजिए प्रभु त्रिभुवन में।
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Begusarai Chapter
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संस्कृत के प्रकांड विद्वान, महातपस्वी एवं दार्शनिक महर्षि कणाद के नाम पर स्थापित यह आश्रम विद्यालय के कण-कण को पवित्र कर रहा है। महर्षि कणाद ने संस्कृत के षड्दर्शनों में से एक 'वैशेषिक दर्शन' की रचना ...
संस्कृत के प्रकांड विद्वान, महातपस्वी एवं दार्शनिक महर्षि कणाद के नाम पर स्थापित यह आश्रम विद्यालय के कण-कण को पवित्र कर रहा है। महर्षि कणाद ने संस्कृत के षड्दर्शनों में से एक 'वैशेषिक दर्शन' की रचना की जिसमें पदार्थों की रचना, ज्ञान एवं मोक्ष प्राप्ति आदि विषयों का उल्लेख किया गया है।
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महर्षि कण्व वैदिक काल के प्रसिद्ध ऋषि थे। इन्हीं के आश्रम में हस्तिनापुर नरेश दुष्यंत की पत्नी शकुंतला एवम् उनके वीर पुत्र भरत का पोषण हुआ था.ऐसा कहा जाता है कि इन्हीं भरत के नाम पर हमारे देश का नाम ...
महर्षि कण्व वैदिक काल के प्रसिद्ध ऋषि थे।
इन्हीं के आश्रम में हस्तिनापुर नरेश दुष्यंत की पत्नी शकुंतला एवम् उनके वीर पुत्र भरत का पोषण हुआ था.ऐसा कहा जाता है कि इन्हीं भरत के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा. सोनभद्र में जिला मुख्यालय से 8 किमी की दूरी पर कैमूर श्रृंखला के शीर्ष स्तर पर स्थित कण्व ऋषि की तपस्थली बताई जाती है जो कंडकोट के नाम से प्रसिद्ध है.
मेरा मानना है कि यह सब उपर्युक्त वर्णित भाव,दर्शन,साहित्य,कला,आध्यात्म और ज्ञान - विज्ञान को आत्मसात कर उस राह पर चलने से ही हो पाया है.
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संस्कृत भाषा के परमज्ञानी महर्षि कपिल के नाम पर यह स्थापित आश्रम, विद्यालय प्रांगण के रज-रज में महर्षि कपिल की उपस्थिति का अनुभव कराता है तथा समस्त विद्यालय परिवार को उत्साहित करता है। महर्षि कपिल ने ...
संस्कृत भाषा के परमज्ञानी महर्षि कपिल के नाम पर यह स्थापित आश्रम, विद्यालय प्रांगण के रज-रज में महर्षि कपिल की उपस्थिति का अनुभव कराता है तथा समस्त विद्यालय परिवार को उत्साहित करता है। महर्षि कपिल ने संस्कृत के षड्दर्शनों में से एक सांख्य - दर्शन की रचना की जिसमें पदार्थों की रचना आदि की व्याख्या की गई है।
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प्रदीप शब्द 'प्र' और 'दीप' के योग से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है-ऐसा दीपक जो अपने सद्गुणों के प्रकाश से पूरे ब्रह्मांड को प्रकाशित कर रहा हो।मैं अपने विचारों को राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की...
प्रदीप शब्द 'प्र' और 'दीप' के योग से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है-ऐसा दीपक जो अपने सद्गुणों के प्रकाश से पूरे ब्रह्मांड को प्रकाशित कर रहा हो।मैं अपने विचारों को राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की कुछ पंक्तियों से व्यक्त करता हूं।
वह प्रदीप जो दीख रहा है
झिलमिल दूर नहीं है।
थककर बैठ गए क्यों भाई
मंजिल दूर नहीं है।।
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