चूल्हा-चौका,झाड़ू-पोछा
चौखट-देहरी,गोबर-गोइठा
बर्तन-बासन,चकला-बेलन
बच्चा-बुतरू,आटा-बेसन.
दिन चढ़ता है रात चढ़े है
उसके आगे काम पड़े हैं
तापमान है चालीस डिग्री
तभियो पप्पा बिगड़ रहे हैं.
पप्पा को समझाती मम्मी
बुतरू को नहलाती मम्मी
आधी साड़ी भींज गई है
तरकारी भी सींझ गई है
कूकर में अब दाल चढ़ेगी
छोरे को अब मार पड़ेगी
दौड़ी भंसे से आती मम्मी
भींजले में मुस्काती मम्मी.
चैत खतम बैशाख चढ़ा है
सब कहते हैं गरम बड़ा है
माथे पर तुम अँचरा लेकर
कहती हो कि धरम बड़ा है.
तुम हँसती हो घर हँसता है
जब तुम रोती हो घर रोता है
करती जब तुम हँसी-ठिठोली
ये घर मेरा वृन्दावन होता है.
भूँजा चना खिलाती मम्मी
ठेकुआ मम्मी निमकी मम्मी
हँसती फिर शरमाती मम्मी
हमपे तुमपे इसपे उसपे
रह रह कर चिल्लाती मम्मी.
मेरी तेरी उसकी मम्मी
छोटकी मम्मी,बड़की मम्मी
सबको मुबारक,सबकी मम्मी.
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